गढ़वा से ग्राउंड रिपोर्ट / भाजपा-यूपीए में टक्कर, गिरि जिनके साथ वे बन सकते हैं गढ़वा के नाथ

गढ़वा (सियाराम शरण वर्मा/लव कु. दुबे). गढ़वा विधानसभा क्षेत्र में चुनावी जंग की तस्वीर साफ होने लगी है। भाजपा और यूपीए में सीधी टक्कर की जमीन तैयार हो रही है। भाजपा ने सिटिंग विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी पर भरोसा जताया है तो झामुमो ने पुराने चेहरे को मैदान में उतारा है। यूपीए में गठबंधन के तहत झामुमो को मिली सीट पर एक बार फिर मिथिलेश ठाकुर मुकाबला करने को तैयार हैं। यहां होने वाले चुनावी दंगल के तीसरे बड़े खिलाड़ी हैं गिरिनाथ सिंह, जो इस मुकाबले से बाहर हैं।


राजनीतिक जानकारों के अनुसार, जिस पक्ष को गिरिनाथ का साथ मिलेगा, उसका पलड़ा भारी रहेगा।  1995, 2000, 2005 में राजद से विधायक रहे गिरिनाथ सिंह लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस साल भाजपा में शामिल हुए। लोकसभा का टिकट नहीं मिला तो समर्थकों को भरोसा था कि गिरिनाथ भाजपा से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। लेकिन वे टिकट हासिल नहीं कर पाए। उनका टिकट कटने पर गिरिनाथ समर्थकों की नाराजगी सतह पर देखी जा रही है। इस बार अंतरकलह से निपटना भी दोनों दलों की चुनौती है।


भाजपा में अलखनाथ पांडेय, विनय चौबे, बाल मुकुंद सहाय व भगत सिंह भी टिकट की रेस में थे। इन सभी को समेट कर रखना आसान नहीं होगा। दूसरी ओर, यूपीए में यह सीट झामुमो के खाते में गई है। इससे राजद और कांग्रेस के नेता व समर्थक भी नाराज हैं। सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने में झामुमो उम्मीदवार को पसीने बहाने होंगे। झाविमो के टिकट पर सूरज प्रसाद गुप्ता और जदयू से पतंजलि केसरी भी चुनाव लड़ रहे हैं और मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने की कोशिश में हैं।


छह प्रखंडों के 4 सबसे बड़े मुद्दे



  • बेरोजगारी : यह सबसे बड़ा मुद्दा है। गढ़वा जिले में उद्योग-धंधे नहीं हैं। लोग बिहार के ईंट भट्ठे पर मजदूरी करने जाते हैं। कई लोग सीजन में धानकटनी से रोजी रोटी कमाते हैं। पढ़े -लिखे युवाओं को नौकरी के लिए पलायन करना पड़ता है।

  • बिजली : अभी तक इस समस्या का हल नहीं निकला। बिहार के भरोसे यहां बिजली मिलती है। हल्की हवा में भी बिजली गुल हो जाती है। शहरी इलाके में भी बिजली कट गई तो घंटों नहीं आती। नेता लोगों को आश्वासन देते हैं , पर मसला हल नहीं हुआ।

  • सड़क : इस मामले भी गढ़वा का बुरा हाल है। सड़कें बानी , पर टिकी नहीं। हालत यह है कि शहर में भी चलना आसान नहीं है। बाई पास सड़क बनाने की मांग लोग करते रहे हैं। लेकिन बातें सुनी गई। ग्रामीण इलाके का हाल और भी बुरा है।स्वास्थ्य : अस्पतालों की हालत बदतर है। डॉक्टर नहीं हैं। कर्मचारियों की कमी है।  ग्रामीण इलाके के उप स्वास्थ्य केंद्र अक्सर बंद रहते हैं। गंभीर रोगों के मरीजों को बिहार ले जाना पड़ता है।


वोटरों के बोल



  • वोट का समय आया है तो नेता आएंगे। वादा करेंगे और गायब हो जाएंगे। लेकिन अब ऐसे नेता के चक्कर में नहीं फंसना है। -राम प्रसाद शर्मा, मेराल

  • गढ़वा में उद्योग-धंधे नहीं खुले। रोजगार के लिए यहां के लोगों को बिहार जाना पड़ता है। सरकारें आती-जाती रही , किसी ने काम नहीं किया। -देवेंद्र सिंह, गढ़वा

  • सबसे बड़ी समस्या बिजली की है। शहरी इलाके में भी घंटों बिजली नहीं रहती। प्रत्याशी चुनाव में सिर्फ आश्वासन देते हैं, पर समस्या से निजात नहीं मिली। -मो. उस्मान


3 चुनावों का सक्सेस रेट



  • 2014 : सत्येंद्र नाथ तिवारी, भाजपा-75196, गिरिनाथ सिंह, राजद-53441, मिथिलेश कुमार ठाकुर, झामुमो-47579

  • 2009 : सत्येंद्र नाथ तिवारी, झाविमो-50474, गिरिनाथ सिंह,राजद-40412, मिथिलेश कुमार ठाकुर, झामुमो-14180

  • 2005 : गिरिनाथ सिंह, राजद-34374, सिराज अहमद अंसारी, जदयू-25841, अनिल साव, बसपा-18225